अभी
तो आई है,
जिस मोड़
पर थी ज़रूरत
तेरी,
तुने वहीँ
से रुखसत पाई
है,
आ बैठ
ज़रा,
शतरंज की बाजियां
हों,
गुफ्तगू के दौर
चलें,
सुनने को आज
तेरी मेरी कहानियां
हो,
पराजित तो कोई
क्या कर सका
तुझे,
काफी बुलंद
लगते तेरे इरादे
होंगे,
मात न
दे पाऊँ तुझे
तो क्या?
अगली चाल
में तेरे घर,
मेरे भी
दो प्यादे होंगे,
देख उस
खिड़की से बचपन
में,
" सूरज " दिखाई आता
है,
लिए मन
में आशा,
दौड़े घास
में नंगे पैर,
बेफिक्र बेतहाशा,
जिसे ज़िन्दगी,
तेरी रीतियों
का होश नही
है,
साफ़ है
दिल जिसका अभी,
मैली कमीज
है,
पर सोच
नहीं है,
दिन-ब-दिन देख
तेरी,
शैतानी रतनार नुमाइशें,
मैं हैरान
हो गया,
जब खाई
ठोकर तेरी राहों
में,
तो मैं
जवान हो गया,
खो गया
किस तरह,
तू ही
बता, ऐ ज़िन्दगी!
मैं क्या
था और क्या
हो गया,
तू ही
बता, ऐ ज़िन्दगी!
तूने सितम
तो सभी पर
ढाए हैं,
भूख लगती
है,
तो लोग
रोटी खाते है,
मैंने चक्कर खाए
हैं,
तुझे लगा
होगा,
कि यह
तो सरल हो
गया,
जिस थल
में,
मैं गिरा
चक्कर खाकर,
वहीँ मेरा
मखमल हो गया,
जब नींद
खुली सवेरे मेरी,
तो करी
निंदा तेरी, ऐ
ज़िन्दगी!
मेरी हार
पर,
तूने लगाये
ठहाके,
मैं हुआ
शर्मिंदा, ऐ ज़िन्दगी!
पासों की तरह
फेंका तूने,
दुनिया की चौकड़ी
में,
मैं पलट
जाऊं या रहूँ
जैसे भी,
तेरी चाल
तो तू चल
ही गयी, ऐ
ज़िन्दगी!
खैर जा
तू अब,
कोई खड़ा
हाथ जोड़े,
सिर झुकाए
भीख में,
किसी के
लिए,
माँग रहा
है तुझे,
जा किसी
को मुक्त कर
दे इस बंधन
से,
जा किसी
की हो जा,
ऐ ज़िन्दगी!
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