तुम पास क्यों नहीं
हो माँ,
आज मन बहुत उदास है,
भूक मुझे लगती कहाँ,
और न लगती मुझे प्यास
है॥
तुम्हारे हाथ से खाया
निवाला,
अमृत सा शीतल मुझको
लगता था॥
हाथ तुम्हारे पकड़,
में पग पग चलता था॥
संग तुम्हारे कितने
खेल खेला हूँ में,
तुम्हारे बिन कितना
अकेला हूँ में॥
प्याले में दूध भरकर
पीना सिखाया तुमने,
जैसे सब पी पाते है,
क्या कहूँ वो दिन मुझे
कितने याद आते है॥
आज जब मन घबराता है
माँ,
तो बहुत रोना आता है,
तुम हो ही नहीं यहाँ,
तो मुझे गोद में बिठा
के चुप कौन कराता है॥
अब खीर में वो स्वाद
कहाँ,
जो तुम्हारे स्वाद
से बनती थी,
जब जब प्याला खाली
होने लगता,
वही चीज़ मुझे बड़ी खलती
थी॥
आज कड़ाई जलती रहती
है, माँ
पर किसी को ध्यान नहीं,
मन मेरा बहुत अकेला
है, माँ
पर कोई परेशान नहीं॥
माँ जब तुम हो मेरे
ख़्वाबों,
मेरे सपनों में,
कहाँ ढूंढ पाऊँ में
तुम्हे इन अपनों में,
आज तस्वीर में तुम्हे
मुस्कुराता देख,
मुझे तुम्हारी बहुत
याद आती है,
कैसे यह बतलाऊं तुमको
में, माँ
याद भी खाली आती है
और खाली ही लौट जाती है
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