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Sunday, February 2, 2014

माँ तुम कहाँ हो?


आँख खुली एक हलचल सी कमरे में है
हज़ारों चेहरे हैं होने को,
फिर भी कुछ कमी सी है॥

बाबा को भी वक़्त कहाँ,
उनकी आँखों में क्यों नमी से है॥

क्यों कोई मुझसे नहीं कर रहा बात,
कोई शैतानी भी मेने नहीं करी आज॥

दादी तुम तो कुछ बोलो,
आखिर क्या बात हुई॥

मन मेरा घबरा रहा है,
 आज कोई आकर मुझे क्यों नहीं साराह रहा है॥

दादी कुछ बोली नहीं,
सीने से लगा मुझे अब वो भी रोने लगी,
मन में मेरे भी अब हलचल सी होने लगी॥

देखा मैंने जब अम्मा को,
सफ़ेद चादर ओढे हुए,
 बंद थे दो नयन वो उनके,
कुछ बोल रहीं थी वो,
लगता जैसे कुछ सोच रही थी वो॥

दिल बेजान सा था मेरा ,
मन खोखला होने लगा था,
सरलता कुछ नहीं थी उन क्षणो  में
हर पल व्यतीत होता जैसे,
हथोड़े की चोट लगने लगा था॥

अरे! कहाँ जा रही हो अम्मा तुम,
क्यों तुम लोग हो उन्हें उठाये,

माँ तुम तोह सो रही हो,

काश मुझे भी नींद जाये॥माँ तुम कहाँ हो?
आँख खुली एक हलचल सी कमरे में है,
हज़ारों चेहरे हैं होने को,
फिर भी कुछ कमी सी है॥

बाबा को भी वक़्त कहाँ,
उनकी आँखों में क्यों नमी से है॥

क्यों कोई मुझसे नहीं कर रहा बात,
कोई शैतानी भी मेने नहीं करी आज॥

दादी तुम तो कुछ बोलो,
आखिर क्या बात हुई॥

मन मेरा घबरा रहा है,
 आज कोई आकर मुझे क्यों नहीं साराह रहा है॥

दादी कुछ बोली नहीं,
सीने से लगा मुझे अब वो भी रोने लगी,
मन में मेरे भी अब हलचल सी होने लगी॥

देखा मैंने जब अम्मा को,
सफ़ेद चादर ओढे हुए,
 बंद थे दो नयन वो उनके,
कुछ बोल रहीं थी वो,
लगता जैसे कुछ सोच रही थी वो॥

दिल बेजान सा था मेरा ,
मन खोखला होने लगा था,
सरलता कुछ नहीं थी उन क्षणो  में
हर पल व्यतीत होता जैसे,
हथोड़े की चोट लगने लगा था॥

अरे! कहाँ जा रही हो अम्मा तुम,
क्यों तुम लोग हो उन्हें उठाये,

माँ तुम तोह सो रही हो,
काश मुझे भी नींद जाये॥

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