गलियों में दौड़ना,
सतौलिये जोड़ना ,
रेत के
टीलों में कूदना,
कटी पतंगें
लूटना,
माँ का
टोकना,
पिता का
रोकना,
दादा का
प्यार,
दादी का
दुलार,
टीचर का
डांटना,
टिफिन दोस्तों में
बांटना,
बातें ये बिसरी
गयी,
सोचता हूँ तो
सदियाँ बीत गयी
सा लगता है,
पर बड़े
हम हुए नहीं
अभी,
किसी बच्चे
के चेहरे पर
ख़ुशी,
जो उछल
कर मंदिर की
घंटी बजाने
में आती है,
देख वह
ख़ुशी आँखें चमक
सी जाती है,
बेचैनी सी उठती
है,
ललक बालमन
की उभर आती
है,
आज भले
मंदिर की घंटी
नहीं,
दूसरी कामनाओं को
वष में करने,
भाव मन
के उछल रहे
हैं शायद कहीं,
तब लगता
है कहीं जाकर,
कि बड़े
हम हुए नहीं
अभी।
मासूम बातें सुन
बच्चों की,
उन नाचती
आँखों में,
सुखद संसार
का दर्पण देख,
मंद उन
सवालों को श्रवण
करना,
शायद खोजना
भी किसी ऐसे
को,
जो हमें
सुने बैठकर कभी,
तब लगता
है कहीं जाकर,
की बड़े
हुए हम नहीं
अभी,
आज भले
जानते हो,
कि
सपने हमारे झूठ
नहीं,
जानते
हैं की बिस्तर
के नीचे कोई
भूत नहीं,
चलना तो
सीख गए कभी
का,
लगता है
पैरों पर खड़ा
होना बाकी है अभी।
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